आज भी लुक्का छुप्पी खेलता हे, मुझसे कही..
ये बचपन मेरा…

कभी ऑफ़िस ना जाने को, अतरंगी बहाने बनाता हे…
ये बचपन मेरा..

हज़ारों कमाने के बाद भी माँ से दस रुपए लेके मुस्कुराता हे..
फिर माँ की गोद में झट से सो जाता हे…
ये बचपन मेरा..
क़द और कपड़े बराबर के हे, फिर भी थोड़ा सा पापा से डरता हे…

पापा से कुछ माँगने की गुहार आज भी मम्मी से लगता हे…
कभी teachers, कभी बचपन के दोस्तों के क़िस्से सुनाता हे…

कभी यूँही पुरानी तस्वीरों में उन्हें ढूँडता हे ये..
प्यार साथ हे फिर भी बचपन के क्रश को stock करके मुस्कुराता हे,

अपना तो पता नहीं, पर उसका फ़ोन नम्बर याद रखता हे ये बचपन मेरा…
ये मेरा वो ही बचपन हे… जो कभी बड़ा होने की ज़िद्द करता था..

और आज बड़ा होकर भी फिरसे बच्चा बन ने की ख्वाहिश करता हे…
फिर बहाने भूल कर, किससे कहानी भूल कर,

माँ की गोद भूलकर तस्वीरें और क्रश भूल कर…
खुद हो ग्रोन अप बोलकर… कही छुप जाता हे..

आज भी लुक्का छुप्पी खेलता हे मुझसे कही…
ये बचपन मेरा…