सुबह के सूरज की किरण और एक ख़ामोश सी परछाईं…
मशीन सी चलती… दब्बो में प्यार भरती…
जूते बनाती.. पंख लगाकर दुनिया भर उड़ती…
हज़ारों ख़्वाहिशों को एक एक कर tick करती…
कभी हे थकती कभी झगड़ती….
नाक पे ग़ुस्सा, होंठों पे मुस्कुराहट रखती…
कुछ ना मानो तो मम्मी से शिकायत की धमकी भी देती…
कभी बेटी सम्भालती कभी खुद बेटी बनती…
गाने बजने पर टिंग टिंग कर उछलती
थोड़ी हे ज़िद्दी थोड़ी ये पिद्दी…
एक ना समझ और समझदार भी..
हार जाऊँ तो कंधा और टूट जाऊँ तो support भी…
कुछ भूल जाऊँ तो reminder… जीत जाऊँ तो award भी…
क्रश भी हे… दोस्त भी… प्यार भी और officially बीवी भी…