नदी का काम था बहना… सदियों से..
किसी ने रास्ते में घर बना दिया…
आज वो बहाव को बाड़ बोल रहे हे…

शेर तो जंगल का राजा था…
किसी ने जंगल काट के एक शहर बसा लिया…
आज जब वो अपना हक़ माँग रहा हे, वो उसे आतंकी कह रहे हे…

पेड़ का काम था छांव देना… ठंडक देना…
किसी ने पेड़ को काट के ख़ुद का घर बना लिया…
आज वो सूरज को दोष दे रहे हे, कुछ ग्लोबल वॉर्मिंग जैसा बोल रहे हे।

ये नदियाँ, जानवर , पेड़ सब बेदिमाग बेज़ुबान हे… इन्हें क्या ख़बर
शायद हम ही सच बोल रहे हे…
या शायद उन्हें दोष देकर सच छिपा रहे हे।