truth- da sachin

कभी प्रतिबिम्ब कभी सच सा मै
खुद से भाग कर खुद को ढूँढता
मै अपने घर में घर को तलाशता
छिपा छिपाई में थप्पी सा मै
कॉफ़ी की कड़वाहट में मिठास को ढूँढता
अकेले में भीड़ को ढूँढता मै…

कभी किताबों के शब्दों में
कभी फ़िल्म के किरदारों में
कभी यूँ ही किसी की कहानी में
सच को ढूँढता मै

जान कर अनजान रहता
फूलो में कांटो को नज़रंदाज़ करता
कभी पोशम्बा के चोर सा मै
शब्दों से भाग कर शब्दों को ढूँढता

कभी प्रतिबिंब कभी सच सा मै…

-दा