एक ख़्वाब
एक ख़्वाब जो उसने देखा था,
कब सच होगा उसे पता नहीं,
वो चलता रहा वो लड़ता रहा..
कभी गिरा भी था पर झुका नहीं…
सब कहते थे ये मुमकिन नहीं..
वो कहता था अभी शाम नहीं…
मै सूरज मुझमें एक आग कही…
मै चाँद भी हु… रोशन रात कही…
मै तारे से भी चमकता हु..
कभी पंछी सा भी उड़ता हु…
तुम्हें मेरी उड़ान का ज्ञान नहीं…
आँखो में एक चमक लिए…
अपनी मुट्ठी को बंद किए…
बस चल रहा एक जिद्द लिए..