बचपन ज़िंदा है
अगर आज भी तुम्हें क्रिसमस की रात को सैंटा का इंटेज़ार है
तो समझो बचपन ज़िंदा है..
अगर आज भी सपनो में रोज़ की जद्दोजहत नहीं और हवाई कलाबाज़ियाँ देखते हो
तो समझो बचपन ज़िंदा है…
परियों की कहानी में ख़ुद को या कभी अपनी प्रिन्सेस को धूँड रहे हो
तो समझो बचपन ज़िंदा है..
अगर ऑफ़िस ना जाने के बहाने डूंढ़ते हो…
रोज़ कोई नई कहानी बुनते हो…
रात को थक कर, मुस्कुराकर सोते हो…
तो समझो बचपन ज़िंदा है।
ज़िंदा रखो उस बचपन को,
उन कहानियो को
उन क़िस्सों को उन बहनो को…
थोड़ी मुस्कुराहट..
थोड़े आँसुओ को…
थोड़े खिलौनो को थोड़े खेलो को…
अगर वो खो जाएँगे
तो खो जाओगे तुम भी कही…